Friday, July 14, 2017

"थम जा, ऐ जीवन।"



जीवन तू ज़रा धीमें चल,
अब तुझपे यक़ीं होने लगा,
थम जा कुछ देर मेरे लिये,
अब मैं भी जीने लगा

आज़माया तो था ख़ूब तूने मुझे,
पर चित् हो कर भी मैं विजयी हुआ
हताश हुआ ख़ूब अंधेरी राहों में,
ढूँढ ख़ुद अपना चिराग़ मैं उदय हुआ


पीछे ख़ूब धकेला कुछ हाथो ने,
उन हाथो में मैं जकड़ गया
पर आज़माया जब ख़ुद के हाथो को मैंने,
तोड़ सारी ज़ंजीरें मैं उड़ गया  

ऊब गया था तुझसे मैं,
पर अब वो वक़्त भी निकल गया
दूर जाना चाहता था तुझसे
पर अब मैं भी संभल गया

जीवन तू ज़रा धीमें चल,
अब तुझपे यक़ीं हो गया ।
थम जा कुछ देर मेरे लिये,
अब मैं भी जी गया ।



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