Tuesday, October 29, 2013

"विधान"


आँखें खोली थी इस संसार में जब, 
पता न था की किस घर आई हूँ ,
उस घर में पली बढ़ी, उस घर में जीना सीखा,
और फिर मालूम हुआ की, मैं तो परायी हूँ  !

जिनका हाथ थाम कर चलना सीखा,
मालूम हुआ,वो हाथ मुझे छोड़ना होगा .
जिनकी सीख से बोला सीखा ,
मालूम हुआ उन्हें ही मेरो आवाज़ सुनने को सोचना होगा .
जिनके साथ बाटें खिलौने और बाटा सारा बचपन,
उन्हें एक नज़र देखने को भी आस लगाये बैठेगा  अब ये मन !
उन पर अब तक इतना रौब जमाया ,
अब उन्हें डांटने को भी तरस जायेगा मेरा घमंड !

उन्होंने सोचा की उनके घर आई हैं एक नन्ही गुडिया,
जो उनके आँगन में ढेर खुशिया लाएगी ,
पर मैं तो रह गयी एक मदमस्त चिड़िया ,
जो उनके आँगन को चेह्का कर, दुसरे देस उड़ जाएगी!

जिनसे मेरा अस्तित्व बना हैं, उन्हें ये संदेसा लिख रही हूँ,
मुझे याद कर उदास न होना, मैं किसी और का जहां रोशन करने जा रही हूँ !
अपने साथ ले जा रही हु , आपकी दी हुई परवरिश ,
हमेशा खुद से भी पहले पूरी करुँगी उनकी हर ख्वाहिश !
आपकी दी हुई सीख से , उनके आशियाँ को बनाउंगी मनोहर,
और फिर गर्व से कहूँगी, मुझमे हैं आपकी संजोयी धरोहर !

उस दुसरे घर को भी हर तरह से अपना बनाउंगी,
पर ये वादा हैं आपसे, इस घर से कभी दूर न जाउंगी !
मांगूंगी भगवान से हमेशा ये एक मन्नत,
की हर जनम में लिखे वो मेरे नसीब , आपकी ये खुबसूरत जन्नत !

आँखें खोली थी इस संसार  में जब, पता न था की किस घर आई हूँ,
अब मालूम हुआ,
हँसते हुए कर रहे हैं जो अपनी सबसे अनमोल पूँजी का दान ,
ऐसे धनी के घर आई हूँ, ऐसे धनी के घर आई हूँ  !

3 comments:

  1. As you think, so you are.
    As you dream, so you become.
    As you create your wishes, so they create you.

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